हँसी मे छिपे ग़म (Sorrow behind the laughter)

राहत की परतों मे छिपे ज़ख़्म को देखा है |
मैने तुम्हारी हँसी मे छिपे गम को देखा है |
सुबह देखा है भीगा तकिया तुम्हारा,
रातों को हाथ मे जाम-ए-मरहम को देखा है |
देखा है गुलाब के काँटों से रिस्ता खून,
उलफत के ग़ज़लों की होली जलते देखा है |
देखा है एक शक़्स की यादों मे ग़मज़दा,
तुम्हे प्यार के नगमो पे बिलखते देखा है |

राहत की परतों मे छिपे ज़ख़्म को देखा है |
मैने तुम्हारी हँसी मे छिपे गम को देखा है |
देखा नहीं काजल में छिपी, दर्द की कालिख़,
हँसते हुए आँखों को फिर भी नम तो देखा है |
देखें हैं तुम्हारी कलाई पे निशान खंजर के,
पीठ की लकीरों पे उनका एहसान देखा है |
देखें है गोल दाग जैसे राख बुझी हो कोई,
गाल पे छपा हुक्म का फरमान देखा है |

राहत की परतों मे छिपे ज़ख़्म को देखा है |
मैने तुम्हारी हँसी मे छिपे गम को देखा है |
देखा है तुम्हे एक कंधे को तरसते,
तुम्हारे कंधे पे सबको बिलखते देखा है |
देखा है खुश तुम्हें तपती धूप मे भी
और आँखों को बेमौसम बरसते देखा है |
देखा है तुम्हें तन्हाइयों से तन्हा लड़ते,
और भीड़ को देख तरसते देखा है |

राहत की परतों मे छिपे ज़ख़्म को देखा है |
मैने तुम्हारी हँसी मे छिपे गम को देखा है |
देखा है तुम्हे करते उजाला घर मे
और उस लौ मे अरमान जलाते देखा है |
देखा है ख्याल रखते, सबका उम्र भर,
और तपते बुखार मे खाना बनाते देखा है |
देखा है, दिन की थकन से थका रात को,
और आधी नींद मे लोरी सुनाते देखा है |


राहत की परतों मे छिपे ज़ख़्म को देखा है |
मैने तुम्हारी हँसी मे छिपे गम को देखा है |
देखा है तुम्हे सर उठा कर चलते,
और हरदम गुरूर मे चूर देखा है |
देखा है कामयाब तुमको उँचे ओहदे पे,
और अकेले गुम्सुम सा, सबसे दूर देखा है |
देखा है डोरियाँ काटते ख़ुदग़र्ज़ कैंची से,
टूटे धागों में गाँठ बाँधते, मजबूर देखा है |

राहत की परतों मे छिपे ज़ख़्म को देखा है |
मैने तुम्हारी हँसी मे छिपे गम को देखा है |
हमसफ़र के बिछड़ने पर चलते तनहां,
फिर भी सबके साथ, सफ़र करते देखा है |
काँटों भरी राहो पर, चलते नंगे पाँव,
और सबके कदमो मे पलके धरते देखा है |
बेगैरत देखा है हर हमराही को, फिर भी,
हाथ थामे उनका, तुमको चलते देखा है |

राहत की परतों मे छिपे ज़ख़्म को देखा है |
मैने तुम्हारी हँसी मे छिपे गम को देखा है |
देखा है तुम्हे पोछते हर शक़्स के आँसू,
अश्क़ो से रुमाल को तर करते देखा है |
देखा है तुम्हे हाथ पकड़ चलना सिखाते,
खुद के कदम उठाने मे, मजबूर देखा है |
देखा है दोनो हाथों से खुशियाँ लुटाते,
महफ़िल-ए-जश्न मे बैठे, गम मे, सबसे दूर देखा है|

राहत की परतों मे छिपे ज़ख़्म को देखा है |

मैने तुम्हारी हँसी मे छिपे गम को देखा है |

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